(संकलन एवं लेखन – सुनील जी गर्ग, शुक्ल पक्ष अष्टमी, विक्रम संवत 2081) जब हम भारतीय संस्कृति के विषय में पढ़ते हैं तो अनेक ऐसे समान अर्थ जैसे दिखने वाले शब्द प्रयोग में आते हुए दिखते हैं जिनमें भेद कर पाना कठिन हो जाता है. मुझे जब ऐसी समस्या ऋषि और मुनि जैसे शब्दों में आई तो मैंने काफी खोजबीन की और ये आलेख तैयार किया, जिससे मेरे जैसे अन्य मुमुक्षुओं को कुछ सहायता मिल सकेगी, ऐसी आशा है. ऋषि ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' से हुई है जिसका मतलब 'देखना' या 'दर्शन शक्ति' होता है. ऋषि को अंतरदृष्टा माना जाता है. उन्होनें ही वेद रूपी अपौरुषेय और दैविक ज्ञान को श्रुतियों के रूप में आगे बढ़ाया. वैदिक काल के अनेक प्रसिद्ध ऋषि हुए जैसे विश्वामित्र, वामदेव, कण्व, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, कश्यप, जमदग्नि, शौनक, याज्ञवल्क्य और गौतम इत्यादि. उत्तर वैदिक काल में ऋषि वेद व्यास ने वेदों का वर्गीकरण किया और एक विधिवत स्वरूप प्रदान किया. वेदों के कुछ भाग के रचियता और वैदिक विद्वान के रूप में ऋषिकाओं (स्त्री ऋषि) जैसे गार्गी, लोपामुद्रा, घोषा, शची, विश्ववारा, अपाला, कांक्षावृत्ति, मै...
(संकलन एवं लेखन – सुनील जी गर्ग, 22 जून 2024, ज्येष्ठ पूर्णिमा, कबीर प्राकट्य दिवस) आज के एक प्रसिद्ध शिक्षक श्री विकास दिव्यकीर्ति ने अपने एक संभाषण में यूँ कहा - "अगर मैं पिछले एक हजार वर्ष में किसी एक महापुरुष की विशेष चरण वंदना करना चाहूँगा, तो वो होंगे कबीर". इससे मिलती जुलती भावना आज के एक अन्य वेदान्त प्रचारक आचार्य प्रशांत से भी सुनी. वेदों की वाणी को पूरे भारत में पहुँचाने का काम अगर देवतुल्य आदि शंकराचार्य ने किया है, तो अद्वैत की मूल भावना को जन भाषा में इस देश के हर निवासी के हृदय पर अंकित करने का काम कबीर ने भी किया है. उसके बाद तो तुलसी, सूर, मीरा, रसखान, रहीम, तुकाराम, रैदास इत्यादि अनेक महापुरुषों ने अपने सगुन, निर्गुण हर भाव से इस भूभाग को सिंचित रखा और हिन्दू दर्शन का सनातन स्वरूप बनाए रखा. जीवन परिचय: ऐसा मुख्य मत है कि संत कबीर इस धरती पर सन 1398 से सन 1518 तक रहे. विद्वान उनके जन्म के समय और उनके कुल इत्यादि के बारे में एकमत नहीं हैं पर ये माना जाता है कि उनका लालन पालन वाराणसी में एक जुलाहा परिवार में नीरू और नीमा नामक दंपत...