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समझिए, कौन होते हैं ऋषि और मुनि

  (संकलन एवं लेखन – सुनील जी गर्ग,  शुक्ल पक्ष अष्टमी, विक्रम संवत 2081)  जब हम भारतीय संस्कृति के विषय में पढ़ते हैं तो अनेक ऐसे समान अर्थ जैसे दिखने वाले शब्द प्रयोग में आते हुए दिखते हैं जिनमें भेद कर पाना कठिन हो जाता है. मुझे जब ऐसी समस्या ऋषि और मुनि जैसे शब्दों में आई तो मैंने काफी खोजबीन की और ये आलेख तैयार किया, जिससे मेरे जैसे अन्य मुमुक्षुओं को कुछ सहायता मिल सकेगी, ऐसी आशा है.  ऋषि  ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' से हुई है जिसका मतलब 'देखना' या 'दर्शन शक्ति' होता है. ऋषि को अंतरदृष्टा माना जाता है. उन्होनें ही वेद रूपी अपौरुषेय और दैविक ज्ञान को श्रुतियों के रूप में आगे बढ़ाया. वैदिक काल के अनेक प्रसिद्ध ऋषि हुए जैसे विश्वामित्र, वामदेव, कण्व, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ, कश्यप, जमदग्नि, शौनक, याज्ञवल्क्य और गौतम इत्यादि. उत्तर वैदिक काल में ऋषि वेद व्यास ने वेदों का वर्गीकरण किया और एक विधिवत स्वरूप प्रदान किया. वेदों के कुछ भाग के रचियता और वैदिक विद्वान के रूप में ऋषिकाओं (स्त्री ऋषि) जैसे गार्गी, लोपामुद्रा, घोषा, शची, विश्ववारा, अपाला, कांक्षावृत्ति, मै...