चित्त और चित्त वृत्ति ये शब्द भारतीय दर्शन में अक्सर कई तरह से समझे जाते हैं, यहाँ हम मुख्य रूप से वेदान्त और योग दर्शन के अनुसार इनको समझेंगे. वेदान्त दर्शन के अनुसार चित्त: चित्त को अक्सर अंतःकरण ( Inner Instrument) के एक भाग के रूप में परिभाषित किया जाता है. इसको अंतःकरण के अन्य तीन भाग मनस (संकल्प और विकल्प विचारों वाला भाग), बुद्धि (पहले अनुभूति और फिर विचारों में निश्चित चुनाव करने वाला भाग) और अहम् (विचार की अंतिम पहचान, प्रतिक्रिया करना और स्वयं से जोड़ने वाला भाग) के साथ चौथे भाग के रूप में जाना जाता है. चित्त को विचारों को स्मृति के रूप में संजो कर रखने वाला हिस्सा माना जाता है. उपरोक्त परिभाषा को संस्कृत के महाशब्दकोश “वाचस्पत्यम्” में इस रूप में देखा जा सकता है, जो इस प्रकार है – “मनोबुद्धिरहङ्कारश्चित्तं करणमान्तरम्। संशयोनिश्चयो गर्व्वःस्मरणं विषया इमे”. इसी की समानार्थी परिभाषा कई अन्य ग्रंथों, जैसे वराहोपनिषत्, परिव्रात् उपनिषद्, पंचिकारण वर्तिकम, पशुपत तंत्रम, प्रकाश संहिता, जयंतभट्ट प्रणिता इत्यादि में भी देखी जा सकती है. वेदान्त के मुख्य प्र...
भारत की शास्त्र संपदा पर आधारित ज्ञान पर लिखे कुछ आलेख